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गरीबी ​हटाओ को लेकर मोदी और राहुल!

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कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का यह बयान आजकल बहुत चर्चित हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि, 'वह एक झटके से गरीबी दूर कर देंगे।' उन्होंने अपने भाषण में कहा कि, 'गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के खाते में डायरेक्ट एक लाख रुपया डाल कर एक झटके में गरीबी दूर कर देंगे।उनके खातों में हर महीने साढ़े आठ हजार रुपया खटाखट डालेंगे।'
भाजपा ने कांग्रेस के गरीब परिवारों को एक एक लाख रुपयक देने के चुनावी वायदे को जुमला कहा है, तो कांग्रेस ने भाजपा के संकल्प पत्र में देश भर में बिजली फ्री देने को जुमला और फ्री बीस (मुफ्त में रेवड़ियां बांटना) कहा है। हालांकि दोनों में कुछ फर्क है। कांग्रेस ने कहा है कि, 'वह सरकारी खजाने से गरीब परिवारों के खाते में हर साल एक लाख रुपया डालेगी।'

इसके विपरीत भाजपा ने कहा है कि, 'वह हर घर सोलर पैनल योजना शुरू करेगी, सोलर पैनल लगाने के लिए सरकार सब्सिडी देगी, उसके बाद जो बिजली का उत्पादन होगा, वह एक तरह से फ्री होगा।' सरकार सरकारी खजाने से पैसा खर्च करके बिजली फ्री नहीं देने वाली। मोदी सरकार के मंत्रियों का कहना है कि, 'एक करोड़ लोगों ने सोलर पैनल के लिए फ़ार्म भर भी दिया है।' सरकार का मानना है कि ग्रामीण व्यक्ति अगर खुद पर 26 रुपये खर्च करने की स्थिति में नहीं है, और शहरी व्यक्ति अगर खुद पर 32 रुपये खर्च करने की स्थिति में नहीं है तो वह गरीबी रेखा के नीचे है।

मोदी सरकार बनने के बाद 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक़ देश की 24.85 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब थी, जो 2019-21 के आंकड़ों में 14.96 प्रतिशत पर आ गई। 2021 के इन आंकड़ों के अनुसार देश के 26 करोड़ 97 लाख 83 हजार लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। मोदी सरकार के आख़िरी शीत सत्र में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक़ इस समय 21.9 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। इसका मतलब है कि पिछले दस सालों में 18.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से मुक्त हुए हैं। मोदी सरकार ने यह काम विभिन्न छोटे छोटे धंधों के लिए बिना गारंटी बैंक लोन की व्यवस्था करवा कर कामयाबी पूर्वक किया है| ऐसे छोटे छोटे बैंक कर्ज में सरकार ने ब्याज में सब्सिडी जैसी योजनाएं लागू कीं। मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना, सौभाग्य योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से भी लोगों का जीवन स्तर सुधारने की कोशिश की।

सैद्धांतिक सवाल यह है कि लोगों का जीवन स्तर सुधारने और किसी भी नई योजना को जमीन तक पहुँचाने के लिए सब्सिडी दिया जाना ठीक है, या टैक्स से हासिल की गई रकम का इस्तेमाल मुल्क की तरक्की में खर्च करने की बजाय अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सीधे लोगों के खाते में डाल देना चाहिए। भले ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र (जिसे उसने संकल्प पत्र कहा है) में फ्री बिजली का वैसा वायदा नहीं किया, जैसा कांग्रेस कह रही है, लेकिन किसानों के खाते में 2000 रुपये प्रतिमाह डालने वाली योजना तो मोदी सरकार पहले से चला रही है। 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन देने का दावा और अगले पांच साल तक जारी रखने का वादा भी भाजपा कर रही है। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को हर साल एक लाख रुपये उनके खातों में डालने का वादा कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी किया गया है। अगर इस तरह फ्रीबीस से गरीबी दूर की जा सकती है, तो यह फार्मूला कांग्रेस ने मनमोहन सिंह की सरकार के समय क्यों इस्तेमाल नहीं किया। इसकी वजह यह है कि हकीकत में यह केवल एक जुमला है।


ताज्जुब की बात है कि कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र बनाने वाले पी. चिदंबरम देश के वित्त मंत्री रहे हैं। क्या उन्होंने चुनाव घोषणा पत्र में पब्लिक से यह वादा करने से पहले सरकारी बजट पर गौर नहीं किया। संसद के शीत सत्र में दिए गए आंकड़ों को ही सही मान लें, तो 22 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, हम छह करोड़ परिवार मान सकते हैं। छह करोड़ परिवारों को प्रति वर्ष एक लाख रुपया देने से सरकार को प्रति वर्ष 60 खरब (6 ट्रिलियन) रुपये खर्च करने होंगे। केंद्र सरकार का पिछले साल का कुल खर्चा 45,03,097 करोड़ था तो राहुल गांधी क्या विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार को बेच कर रकम खर्च करेंगे या दुनिया भर से कर्ज लेकर भारत को एक झटके में कंगाल कर देंगे।शायद कांग्रेस और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार राहुल गांधी को पता है कि वे सत्ता में आने से रहे, इसलिए रेवड़ियों के जुमले बांटने में अपना क्या जाता है।

राहुल गांधी जिस डायरेक्ट ट्रांसफर की बात कर रहे हैं, शायद वह भूल गए कि गरीब कल्याण की सरकारी योजनाओं की धनराशि सीधे गरीबों के खातों में ट्रांसफर करने का करिश्मा नरेंद्र मोदी सरकार ने ही किया है। राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने तो 35 साल पहले कहा था कि केंद्र से एक रुपया भेजते हैं, तो नीचे 15 पैसे पहुंचता है। यानी कांग्रेस को 35 साल पहले सरकारी और राजनीतिक करप्शन की पक्की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने करप्शन रोकने की कोई कोशिश नहीं की। अलबत्ता कांग्रेस की सरकार ने 2008 में जब नरेगा (बाद में मनरेगा) योजना शुरू की, तो उसमें भी कमीशनखोरी और फर्जी इनरोलमेंट शुरू हो गई थी। जब तक नरेंद्र मोदी ने जनधन खाते नहीं खुलवाए और डायरेक्ट बेनिफिट शुरू नहीं किया, तब तक ऊपर से लेकर निचले स्तर तक करप्शन हो रहा था| इसीलिए अमित शाह ने राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि,' यही जुमला उनकी दादी इंदिरा गांधी ने और बाद में उनके पिता राजीव गांधी ने भी बोला था।'

कहने का मतलब यह है कि मुल्क की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस के अलंबरदार घोषणा पत्र तैयार करते वक्त यह भूल गए कि पब्लिक से किए गए फ्री रेवड़ी बांटने के वादे वे आखिर वे कैसे पूरे करेंगे...? आखिर इसके लिए वे कौन सी रणनीति अपनाएंगे..? कांग्रेस की इसी अदूरदर्शिता की वजह से आज वह पब्लिक से भी दूर होती जा रही है। खैर, यह तो वक्त ही बताएगा कि वोटर पीएम मोदी की गारंटी पर भरोसा जताते हैं अथवा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के वादों पर भरोसा करके अपने वोट का इस्तेमाल करते हैं।

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